गुरुवार, मई 10, 2012

हँसने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है :कौन थे कनु रॉय ?

पिछली पोस्ट में आपसे बात हो रही थी मन्ना डे, कपिल कुमार और कनु रॉय की तिकड़ी की। इस त्रिमूर्ति का एक और गीत मुझे बेहद पसंद है।पर इससे पहले 1974 में आई फिल्म आविष्कार के इस संवेदनशील नग्मे की बात करूँ कुछ बातें इसके संगीतकार कनु रॉय के बारे में। 


कनु राय ने अपने संगीत का सफ़र बंगाली फिल्मों से शुरु किया था। पचास के दशक में वे गायक बनने का सपना लेकर हावड़ा से मुंबई पहुँचे। गायिकी का काम नहीं मिला पर सलिल दा से परिचित होने की वज़ह से उन्हें उनके सहायक का काम जरूर मिल गया। सलिल दा ही के यहाँ उनकी मुलाकात बासु भट्टाचार्य से हुई। हिंदी फिल्मों में बतौर संगीतकार उन्हें बासु भट्टाचार्य ने मौका दिया और फिर वे बासु दा की सारी फिल्मों के
ही संगीत निर्देशक बन गए। उसकी कहानी, अनुभव, आविष्कार, श्यामला और स्पर्श में उनका काम सराहा गया। 

कनु राय एक अंतरमुखी इंसान थे। काम माँगने के लिए निर्देशकों के पास जाने में उन्हें झिझक महसूस होती थी। शायद इसके लिए उनकी पिछली पृष्ठभूमि जिम्मेदार रही हो। क्या आपको पता है कि कनु रॉय फिल्मों में काम करने से पहले एक वेल्डर का काम किया करते थे? कहते हैं कि युवावस्था में कनु ने हावड़ा ब्रिज की मरम्मत का काम भी लिया था।

फिल्मफेयर को दिये अपने एक साक्षात्कार में गुलज़ार अविष्कार का जिक्र करते हुए कहते हैं कि बासु दा वैसे तो बेहद भले आदमी थे पर फिल्मों को बनाते समय खर्च कम से कम करते थे। वो अक्सर ऐसे कलाकारों के साथ काम करते जिनसे कम पैसों या मुफ्त में भी काम लिया जा सके। गुलज़ार को उन्होंने आविष्कार की पटकथा लिखने के लिए दो सौ रुपये देते हुए कहा था कि मैं इतना तुम्हें इसलिए दे रहा हूँ कि तुम बाद में ये ना कह सको कि बासु ने तुमसे इस फिल्म के लिए मुफ्त में काम करवाया। आप सोच सकते हैं कि जब गुलज़ार का ये हाल था तो कनु दा की क्या हालत होती होगी। 

गुलज़ार ऐसे ही एक प्रसंग के बारे में कहते हैं
"कनु के पास कभी भी छः से आठ वादकों से ज्यादा रिकार्डिंग के लिए उपलब्ध नहीं रहते थे। और बेचारा कनु उसके लिए कुछ कर भी नहीं पाता था। मुझे याद है कि कितनी दफ़े कनु , बासु दा से एक या दो अतिरिक्त वॉयलिन के लिए प्रार्थना करता रहता। बासु दा और कनु मित्र थे। सो जब भी कनु का ऐसा कोई अनुरोध आता बासु दा उसे वो वाद्य अपने पैसों से खरीदने की सलाह दिया करते थे। अब उसके पास कहाँ पैसे होते थे। बासु की बहुत हुज्जत करने के बाद वे उसे वॉयलिन और सरोद देने को राजी होते थे।"
ताज्जुब होता है कि इतनी कठिनाइयों के बीच भी कनु दा ने इन चुनिंदा फिल्मों में इतनी सुरीली धुनें बनायीं और वो भी लगभग न्यूनतम संगीत संयोजन से।। आज तकनीक कहाँ से कहाँ पहुँच गई। संगीत पर पैसा पानी की तरह बहाया जाता है फिर भी मधुर धुनों को सुनने के लिए कितना इंतज़ार करना पड़ता है।

फिल्म आविष्कार में एक बार फिर कपिल कुमार का लिखा ये गीत देखिए। मुखड़े के पहले बाँसुरी की जो धुन बजती है वो वाकई लाजवाब है। इंटरल्यूड्स में बाँसुरी के साथ कनु दा का प्रिय वाद्य यंत्र सितार भी आ जाता है। खुली छत पर एकाकी रातों में दुख से बोझल साँसों के बीच आसमान में टिमटिमाते तारों के लिए कपिल जी का ये कहना कि किसी की आह पर तारों को प्यार आया है.....मन को निःशब्द कर देता है। मन्ना डे की दर्द में डूबती सी आवाज़ और उसका कंपन इतना असरदार है कि गीत को सुनकर आप भी अनमने से हो जाते हैं। तो आइए सुनते हैं ये नग्मा....

  

हँसने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है
कोई हमदर्द नहीं, दर्द मेरा साया है
हँसने की चाह ने इतना मुझे रु..ला..या है

दिल तो उलझा ही रहा ज़िन्दगी की बा..तों में
साँसें  चलती हैं कभी कभी रातों में 

किसी की आह पर तारों को प्यार आया है
कोई हमदर्द नहीं ...

सपने छलते ही रहे रोज़ नई रा..हों से
कोई फिसला है अभी अभी बाहों से
 
किसकी ये आहटें ये कौन मुस्कुराया है
कोई हमदर्द नहीं ...

राजेश खन्ना वा शर्मिला टैगौर द्वारा अभिनीत फिल्म आविष्कार में ये गीत शुरुआत में ही आता है.. 


 कनु दा से जुड़ी अगली कड़ी में बातें होगी गीता दत्त के गाए और उनके द्वारा संगीतबद्ध कुछ बेहतरीन गीतों की...

 कनु दा से जुड़ी इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ 
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8 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on मई 10, 2012 ने कहा…

बहुत मधुर संगीत...

ANULATA RAJ NAIR on मई 10, 2012 ने कहा…

गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा.....
बस एक हुक सी उठती है दिल में......

शुक्र है गानों की रिकोर्डिंग हो रखी है तो हम सुन सकते हैं आज भी......

शुक्रिया इस मधुर पोस्ट के लिए.

अनु

Yogesh Ojha on मई 10, 2012 ने कहा…

Reality of life.
Ya ye kahiye ki
har aadami ke life ki ye real story hai.

Beautiful lines........!!

rashmi ravija on मई 10, 2012 ने कहा…

कितनी मुश्किलों में काम करते थे..पहले के संगीतकार और ऐसी मधुर धुनें बना लेते थे...आज शायद ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लालच ने ही संगीत से मधुरता चुरा ली है..

अच्छा लगा कनु रॉय के विषय में जानना...

Sunil Kumar on मई 10, 2012 ने कहा…

गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा .अच्छे संस्मरण अच्छी लगी पोस्ट

Prashant Suhano on मई 11, 2012 ने कहा…

कनु राय सचमुच एक बेहतरीन संगीतकार थे.. उनके बनाए सभी गानें मधुर हैं, पर अफसोस है के उन्होंने ज्यादे फिल्मों में काम नहीं किया....

कंचन सिंह चौहान on मई 20, 2012 ने कहा…

words with deep emotions... Thanks

Manish Kumar on मई 30, 2012 ने कहा…

प्रवीण, प्रशांत, रश्मि जी, कंचन, सुनील, योगेश व अनु कनु दा का संगीतबद्ध ये गीत आप सबको पसंद आया जान कर खुशी हुई।

 

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